Friday, March 1, 2019

'अंधेरे में पहाड़ उतरना मुश्किल था, जान कैसे बचाएं'

पाकिस्तान और भारत के बीच जारी तनाव के कारण लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर बसने वाले कश्मीरियों की पहले से जारी समस्याओं में एक बार फिर से इज़ाफ़ा हो गया है.

ये वो लोग हैं जो यूं तो सारा साल ही अनिश्चितता की फ़िज़ा में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, क्योंकि इनके घर और बसेरे हमेशा बंदूक़ों और तोपों के निशाने पर होती हैं लेकिन तनाव की सूरत में इन्हें बेघर भी होना पड़ता है.

भारत की तरफ़ से पाकिस्तान की सीमा उल्लंघन के बाद बुधवार की तड़के लाइन ऑफ़ कंट्रोल के अन्य इलाक़ों की तरह चकोठी सेक्टर भी हल्के और भारी हथियारों समेत तोपों की आवाज़ से गूंज उठा.

एक बार फिर हुए बेघर

पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की वादी-ए-झेलम के गांव चकोठी के निवासी सैय्यद हुसैन ने बताया कि उनकी आंख रात के सवा दो बजे धमाकों की आवाज़ से खुली.

वो कहते हैं कि उनका परिवार इससे पहले भी 1999 के तनाव के दौरान बेघर हो चुका था और फिर सालों बार उन्होंने वापस उसी स्थान पर घर बनाया जो सीधे भारतीय तोपों के निशाने पर था.

सोमवार और मंगलवार की दर्मियानी रात के दो बजे से चार बजे तक का वक़्त उनके परिवार और आस-पास के लोगों ने ख़ौफ़ और बेचैनी में गुज़ारा. उनके मुताबिक़ "पहाड़ पर होने की वजह से वो अंधेरे में नीचे सड़क तक नहीं जा सकते थे."

उनका कहना था, "छोटे-छोटे बच्चों के साथ अंधेरे में पथरीले कच्चे रास्तों से उतरना मुश्किल था और टार्च जलाना ख़तरे से ख़ाली नहीं था. इसलिए हमने थोड़ी रोशनी होने का इंतज़ार किया."

"जब फ़ायरिंग होती है तो उन्हें (भारतीय फौज को) ये नज़र नहीं आता है कि सिविल हैं या फ़ौजी, उन्हें बस लोगों को मारना होता है."

सैय्यद हुसैन जब अपने परिवार और मुहल्ले के लोगों के साथ सड़क तक पहुंचे तो उन्हें मालूम हुआ कि सड़क के क़रीब रहने वाले सभी लोग फ़ायरिंग शुरू होते ही गाड़ियों पर या फिर पैदल वहां से निकल चुके थे.

"हमारा एक रिश्तेदार आगे के इलाक़ों से कंटेनर लेकर आ गया और हम सब उसमें सवार होकर वहां से निकल आए."

एक और स्थानीय व्यक्ति सैय्यद किफ़ायत शाह का कहना है कि हालांकि भारत की तरफ़ से पाकिस्तानी हवाई सीमा में जहाज़ ले जाने के बाद प्रशासन व फ़ौज ने स्थानीय लोगों को ख़बरदार किया था कि शाम के बाद सावधान और अलर्ट रहें.

"लेकिन लोगों को लगा कि शायद कुछ नहीं होगा. क्योंकि यहां अक्सर तनाव के बाद अलर्ट होते रहते हैं. रात को गोलाबारी शुरू हुई तो जिस हाल में थे बस बच्चों को उठाया और घरों से निकल खड़े हुए."

किफ़ायत शाह का कहना था कि हालांकि सारा गांव ख़ाली हो चुका है, फिर भी लोग माल-मवेशी को चारा डालने के लिए घरों को लौटे थे जो शाम होते ही वापस आ गए.

उन्होंने बताया कि पूर्व में होने वाले तनाव की वजह से प्रशासन ने स्थानीय लोगों को घरों के क़रीब महफ़ूज़ बंकर बनाने के लिए आर्थिक मदद भी की थी, लेकिन ये या तो नाकाफ़ी था या ये सहूलत ज़्यादातर को नहीं मिल सकी.

'प्रशासन पूरी तरह अलर्ट और तैयार है'
चकोठी और उससे क़रीबी लाइन ऑफ़ कंट्रोल के इलाक़े हटियां बाला में आते हैं. हटियां बाला के डिप्टी कमिश्नर इमरान शाहीन ने बीबीसी को बताया कि लाइन ऑफ़ कंट्रोल के इलाक़ों चकोठी और खुलाना के तक़रीबन 100 परिवार विस्थापित हुए हैं.

उनके मुताबिक़ ज़्यादातर लोग अभी तो अपने ही रिश्तेदारों के घरों में ठहरे हुए हैं. प्रशासन ने भी लोगों के रहने का बंदोबस्त कर रखा है.

उनका कहना था, "चूंकि ये कश्मीर के प्रधानमंत्री का इलाक़ा है इसलिए उनकी ख़ास आदेशों पर इंतज़ाम किए गए हैं. रिहाइश के लिए शैक्षिक संस्थानों की इमारतें हासिल की गई हैं और मेडिकल कैम्प भी लगाया गया है."

उन्होंने बताया कि "बुधवार को दोपहर के बाद से इलाक़े में फ़ायरिंग और गोलाबारी बंद है, फिर भी प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट है. तमाम ग़ैर-सरकारी संस्थाएं भी सरकार के साथ हैं."

उनका कहना था कि लोगों को उनकी सुरक्षा की ख़ातिर लाइन ऑफ़ कंट्रोल के बेहद क़रीबी इलाक़ों में जाने से परहेज़ करने की सलाह दी जा रही है.

नीलम में फ़िलहाल अमन लेकिन लोगों में ख़ौफ़

दूसरी तरफ़ वादी-ए-नीलम में हालात अपेक्षाकृत शांत हैं, लेकिन स्थानीय लोगों में ग़ैर-यक़ीनी का माहौल है.

नीलम की तरफ़ जाने वाली सड़क का एक बड़ा हिस्सा दरिया की दूसरी तरफ़ लाईन ऑफ़ कंट्रोल के उस पार भारतीय तोपों के निशाने पर रहता है, इसलिए तनाव की सूरत में स्थानीय लोगों के लिए विस्थापन आसान नहीं है.

याद रहे कि यहां कई बार शहरी आबादी और लोगों की गाड़ियों को निशाना बनाया गया.

नीलम गांव के रहने वाले आबिद हुसैन का कहना था कि ये अलग बात है कि लोगों को ख़बरदार रहने को कहा गया है, लेकिन यहां अब तक फ़ायरिंग या गोलाबारी नहीं हुई है.

उनका कहना था, "मुज़फ़्फ़राबाद से आने वाली सड़क को नौसेरी के स्थान पर ट्रैफ़िक के लिए बंद कर दिया गया है. हालांकि दो से तीन घंटे में कोई एक गाड़ी को जाने की इजाज़त दी जाती है."

ऐसी स्थिति में वादी पूरे तौर पर दूसरे इलाक़ों से कट जाती है. हालांकि आबिद ने बताया कि "पहले के तजुर्बे और कुछ मौसम की सूरतेहाल के पेशेनज़र लोगों के घरों में कम से कम एक महीने का राशन मौजूद होता है."

उनका ये भी कहना था कि दो दिन से शाम के बाद इलाक़े में सुरक्षा के मद्देनज़र बिजली बंद कर दी जाती है.

तनाव की सूरत में उनका कहना था कि नीलम के लोगों के लिए अपने घरों को छोड़कर जाना मुमकिन नहीं क्योंकि सड़क निशाने पर है.

वो कहते हैं, "पहाड़ों के रास्ते जाने की सोचना भी मुश्किल है क्योंकि इस रास्ते से पैदल जाना आजकल इसलिए मुमकिन नहीं कि चोटियां बर्फ़ से ढ़की हुई हैं.

No comments:

Post a Comment

欧盟发公开信向意大利致歉:对不起,欧盟现在与你并肩

  中新网4月3日电 据欧联网援引欧联通讯社报道 中国国家主 色情性&肛交集合 席习近平3月29日赴浙江宁 色情性&肛交集合 波调研考察。 色情性&肛交集合 这被视作他3月10日到 色情性&肛交集合 访疫情重灾区武汉之后, 色情性&肛交集合 力推“复工 色情性&肛交集合 复产”...